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जब किसी दूसरे को गलत करते देखते हैं तब लगता है मैं तो अच्छा हूँ क्या यह अहंकार है ?
जब दूसरे को अंहकार करते देखते हैं तो स्वयं में भी अहंकार की भावना आती है, क्या यह गलत है ?
https://spotifyanchor-web.app.link/e/IUxHZPtedAb
हठ योग एवं तंत्र में प्रयोग में होनेवाली मुद्राओं में एक महत्वपूर्ण मुद्रा है, - शाम्भवी मुद्रा
ध्यान कक्ष में चर्चा हुई इसी विषय का रिकॉर्डिंग यहाँ प्रस्तुत है।
https://open.spotify.com/episode/48bh0LikhQ2yiR3Ah2LgUt?si=8395db4d68ed40bb&nd=1
आज शाम को ८ बजे एक ध्यान अथवा योग निद्रा की कक्षा रख सकते हैं और उसके बाद थोड़ी देर संवाद कर सकते हैं ...

अगर लोग इच्छुक हैं तो मुझे अवगत कराएं
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शामिल रहूंगा/रहूंगी
शाम की 8 बजे वाली कक्षा में शामिल होने के लिए लिंक -
https://meet.google.com/hzj-uyon-xgk
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एक युवा छात्र के प्रश्न का उत्तर है, जो बहुत सारे युवाओं के प्रश्न को उत्तर करेगा। पढ़ो और इसे अपने जीवन में उतारना शुरू करो। अगर कोई प्रश्न उठता है तो मुझसे संपर्क करो।

~~~

1. सबसे पहले सुबह उठना शुरू करना है 5 बजे, निश्चित कर लो चाहे कितने बजे भी सोती हो उठना सुबह 5 बजे ही है।
2. मेरी मेडिटेशन की क्लास होती है सुबह 430 बजे फ्री, लेकिन उसके लिए और पहले उठना होगा
3. सुबह 5:45 तो 7:00 बजे तक योग की क्लास होती है अभी यह भी फ्री है उसको भी ज्वाइन कर सकते हो।
4. सुबह उठना शुरू कर दोगे तो रात जल्दी सोने लगोगे खुद से
5. रिलेशनशिप में रहना है या नहीं रहना है, यह मैं तुम्हारे विवेक पर छोड़ता हूं। लेकिन किसी भी स्थिति को अपने जीवन का बाधा नहीं बनाना है। इसलिए अपनी प्राथमिकता तय करो
6. एक समय निश्चित करो, रात को 10 बजे के बाद मोबाइल का प्रयोग नहीं करोगे। रात 10 बजे के बाद मोबाइल हमेशा अपने बिस्तर से दूर रखो।
7. बिना मोबाइल देखे नींद नहीं आती है तो सोने से पहले किताब पढ़ो
8. अगर सुबह मेरी मेडिटेशन की कक्षा में शामिल नहीं हो सकते हो तो मेरी guided meditation की एक ऑडियो है उससे प्रतिदिन 20 मिनट ध्यान करने का कोशिश करो
9. एक छोटा सा, सरल सा routine बनाओ, जिसे फॉलो करो इससे आत्मविश्वास बढ़ने लगेगा
10. एक छोटा सा लक्ष्य बनाओ जैसे - सुबह जल्दी उठना, किताब पढ़ के सोना, एक दिन बिना मोबाइल के रहना। और उसे हासिल करो ऐसा करने से आत्मविश्वास मजबूत हो जायेगा।
11. धीरे - धीरे पुरे दिन चर्या और रात्रि चर्या को नियमबद्ध करो, अर्थात routine में डाल दो

तुम्हारी सारी परेशानियाँ inter lniked हैं, जैसे ही एक जगह से सुलझाने लगोगे पूरी जिन्दगी सुलझ जायेगी।

यह ध्यान रखना,
अगर तुम्हारी जिन्दगी तुमने नहीं संभाला तो बाकी कोई नहीं संभालेगा।

मदद मेरी तरफ से हमेशा मिलेगा, बस तुम तैयार हो जाओ तुम अपने जीवन में सच में सुधार और बदलाव लाना चाहते हो।
अपने भोजन के प्रति हमेशा सचेत रहें, आपका भोजन आपके शरीर और दिमाग का निर्माण करता है

दिए गए विवरण के आधार पर आप अपने प्रतिदिन के आहार की योजना बना सकते हैं। लौकी के जूस और मेथी के पानी के अलावा बाकी का उपयोग लंबे समय तक किया जा सकता है।

नाश्ता
सुबह खाली पेट एक गिलास सफेद लौकी का जूस (इसे एक बार में केवल 3 सप्ताह तक ही लें, जिन्हें सर्दी या खांसी है उन्हें जूस तुरंत बंद कर देना चाहिए)

कम खाएं या मिर्च, मसाले और तले हुए खाद्य पदार्थ बिल्कुल न खाएं (लौकी का जूस पेट को ज्यादा साफ रखता है, इसलिए संक्रमण का खतरा रहता है)

जूस की जगह मेथी का पानी पियें (यह भी लगातार 21 दिन तक)
- एक चम्मच मेथी को रात भर पानी में भिगो दें, सुबह खाली पेट उस पानी को पी लें और मेथी के दानों को चबा लें या पूरा निगल लें।

2. लगभग 1/2 घंटे जूस पीने के बाद "नाश्ता"।
नाश्ते के समय -
- सब्जी के साथ पोहा
- बेसन या पुराने अनाज से बना चीला
- इडली
- कोई भी फल (केले को छोड़कर)
- नाश्ते में कुछ सूखे मेवे (काजू, बादाम, पिस्ता आदि) खाएं। मात्रा बहुत ज्यादा नहीं होनी चाहिए. अनिवार्य भी नहीं
-रोटी/चावल/पराठा जितना हो सके कम खाएं

सुबह का भोजन सबसे अधिक पौष्टिक होना चाहिए

दिन का खाना
दोपहर के खाने में भी आप सब कुछ खा सकते हैं, हो सके तो छाछ, नहीं तो खाने में दही जरूर शामिल करें.
- दो रोटी और एक कटोरा चावल (इस भोजन में जोड़ा जा सकता है)
- दही चावल
- छाछ
- सब्जियाँ आदि।

दोपहर के भोजन से 1/2 घंटा पहले एक कटोरी (खीरा, लौकी या लौकी) रायता या सलाद खाएं।

शाम का नाश्ता
शाम के नाश्ते के रूप में दो मुट्ठी भीगी हुई मूंगफली या मूंग (चना, मूंग) खाएं

रात का खाना
इसे सूर्यास्त से पहले या बिस्तर पर जाने से कम से कम 2 घंटे पहले करने का प्रयास करें।
रात का खाना कम खायें
-
- आप बेसन का चीला (डोसा) या थोड़ा सा दलिया (गेहूं, भूलभुलैया, जौ, बाजरा - रोज बदलते रहें) खा सकते हैं.
- अगर आपने दोपहर में रोटी नहीं खाई है तो आप एक रोटी या दो रोटी खा सकते हैं.
- रात के समय चावल या कोई भी तला हुआ खाना न खाएं।

एक गिलास गुनगुने दूध में हल्दी डालकर पियें। जिन लोगों को दूध पीने से गैस बनती है उन्हें सोने से 1/2 घंटा पहले दूध पीना चाहिए।

तीनों समय भोजन करते समय एक महत्वपूर्ण बात का ध्यान रखें,
भूख को 4 भागों में बांट लें, दो भाग ठोस, एक भाग तरल और एक भाग खाली रखें।

कुछ और बातें जिनका आपको ध्यान रखना चाहिए -

1. कम से कम 45 मिनट तक योगाभ्यास अवश्य करें
2. 15 मिनट का ध्यान अभ्यास या कम से कम शवासन
3. दिन में कम से कम एक बार खाना जमीन पर बैठकर खाएं। संभव हो सके तो दिन के तीनों समय का खाना भूमि पर बैठकर खाएं।
4. चीनी का उपयोग 100% बंद करें ( यदि संभव न हो तो गुड़ या शहद का प्रयोग करें )
5. अपने नमक के उपयोग को प्रति दिन 5 ग्राम तक सीमित करने का प्रयास करें। ( जिन लोगों को ब्लड प्रेशर की समस्या है उन्हें नमक का सेवन नहीं करना चाहिए. नमक की मात्रा आप धीरे-धीरे बदल सकते हैं )
6. अगर अचानक मीठा खाने की इच्छा तीव्र हो जाए तो कुछ किशमिश चबाकर खाएं और पानी पी लें।
7. दिन के तीनों भोजन में रोटी/चावल कम खाएं; इसे अचानक रोकने की कोई जरूरत नहीं है. इसकी जगह बाजरे के दानों का प्रयोग करें।
8. जब भी खाएं तो इस बात का ध्यान रखें कि खाना जीभ के लिए नहीं बल्कि शरीर को चलाने के लिए जरूरी है।
9. सप्ताह में कम से कम एक बार खिचड़ी खाएं.
10. सप्ताह में एक दिन या आधे दिन का उपवास अवश्य रखें।
ध्यान कक्षा ४:३० सुबह

ध्यान एक प्रक्रिया नहीं बल्कि अवस्था है, इस बात को हमेशा से मन में बिठाए रखें। तो जब कभी कोई आपको ध्यान साधना सीखने या सिखाने की बात करता है तो बस इतना ही समझें कि कैसे ध्यान की अवस्था तक पहुंचा जाए वह रास्ता दिखाया जायेगा। 

वह रास्ता भी बहुत महत्त्वपूर्ण है परन्तु उससे ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाता है बताए गए रास्ते पर चलना। अगर आप सोचें सिर्फ ध्यान से सम्बन्धित बातें बहुत दिनों, महीनों और सालों तक भी सुनते रहें ध्यान की अवस्था तक पहुंच सकेंगे, ऐसा संभव नहीं हो सकेगा।

उसके लिए प्रयास और अभ्यास एक मात्र उपाय है।

यहां सुबह ब्रह्ममुहुर्त की ध्यान कक्षा में सांसों पर ध्यान का अभ्यास करते और करना सीखते हैं।

प्रक्रिया अगर समझ कर रखें तो सुबह के ध्यान साधना का अधिक लाभ उठा सकेंगे 

१. यह कोई जादू नहीं है किसी भी चमत्कार की अपेक्षा नहीं रखना
२. ध्यान साधना के अभ्यास के समय मन में विचार आते जाते रहेंगे, इनसे अचानक से शून्य नहीं हो पाओगे। इसके प्रति कोई आशा या चिंता नहीं करना।
३. किसी भी तरह की उम्मीद या आशा लेकर नहीं बैठना की आज ध्यान की स्थिति हो ही जायेगी। यही आशा/निराशा, यही चाहत आपके लिए ध्यान में बाधा बनेगी।
४. ध्यान साधना की प्रक्रिया आपको रोचक शायद न भी लगे, क्योंकि यह अपने ही मन को नियंत्रित करने का तरीका है। इसलिए आपका मन विचलित होगा बार बार।
५. ध्यान का साधना की शुरुआत किसी भी प्रक्रिया से शुरू की जा सकती है। कोई गलत, कोई सही है इस तरह बातों में नहीं उलझना।
६. यहां सुबह शुरुआत में ध्यान के लिए, आपको सांसों के आवागमन और उसके साथ कुछ गिनती करने को कहा जा सकता है अथवा सिर्फ सांसों के आवागमन पर ध्यान रखने को कहा जाता है। उद्देश्य सिर्फ यही होता है आपकी एकाग्रता बढ़े
७. ध्यान की स्थिति एकाग्रता के बाद की ही स्थिति है।

कोई भी दुविधा या परेशानी होती है तो प्रश्न पूछ लिया करो, अनुमान लगाकर आगे नहीं बढ़ो। ऐसा करने से आपका बहुत सारा मूल्यवान समय नष्ट होता है।
गुरुजी एक बात पूछनी थी मुझे,,
Q. जैसे दुनिया में जितने भी महान लोग हुए है, जिन्होंने दौलत और शोहरत दोनो ही कमाए हो, जैसे लता मंगेशकर जी हैं, सचिन तेंदुलकर हैं,, जिन्होंने भारत रत्न को प्राप्त किया हो,, क्या उनको भी अपने फिर से नए जन्म में आत्मा की यात्रा करने पड़ेगी,, मेरा मतलब ध्यान की यात्रा में ही लगना पड़ेगा फिर से इस संसार में
तभी उनकी मुक्ति हो पाएगी??


~ 

दौलत और शोहरत कभी भी इस जीवन चक्र से मुक्ति नहीं दिलाती है। क्योंकि न उसे पैसे से खरीदा जा सकता है न ही प्रतिष्ठा से पाया जा सकता है।

बल्कि ठीक इसके उल्टे, पैसे और प्रतिष्ठा के मोह में इन्सान इस बंधन में और ज्यादा बंधा रहता है। 

राजकुमार सिद्धार्थ के पास पद, प्रतिष्ठा, धन आदि सब कुछ था लेकिन शान्ति और मोक्ष की तलाश में सब त्याग करना ही पड़ा। सब त्याग के बाद जो बचा वही गहरी शान्ति हुई, वहीं से मुक्ति का मार्ग निकला। तभी वो बुद्ध कहलाए।

सिद्धार्थ गौतम से गौतम बुद्ध हो गए।


अगर आपके पास भी कोई प्रश्न जो आपको परेशान करती हो अथवा ध्यान व योग से सम्बन्धित कोई प्रश्न हो तो प्रश्न अवश्य पूछें।

एक छोटा सा मार्गदर्शन आपकी पूरी जीवन यात्रा को साकारात्मक दिशा दे सकता है।

Telegram / Instagram - @dhyankakshaorg
गुरु जी....अगर किसीके साथ कुछ गलत होता है ,
जैसे किसके साथ दुर्व्यवहार या कोई गलत आरोप या उसकी जिंदगी के साथ कोई गलत फैसला या फिर उसके साथ भेदभाव , या समाज में बदनामी करना, उसके साथ मारपीट करना गालियां देना..!

तो उस व्यक्ति के कई प्रयत्न करने के बाद भी कुछ ठीक न होना, तब उसको अपने पूर्व जन्म के कर्म का फल समझते हुए उस अन्याय को सहना चाहिए या उसको आवाज उठानी चाहिए अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ और सजा दिलानी चाहिए...?
क्योंकि अगर हमसे पिछले जन्म में कुछ गलत हुआ हो तो वो फल तो हम हर हाल में भुगतना ही पड़ेगा ना...?


उत्तर -

इसको एक कहानी की तरह समझते हैं ...
एक बार चिमनीलाल और उसका दोस्त नटवर 100- 100 बीज का रोपण करते हैं। जान के कहो या अनजाने में चिमनी ने आम के बीज बोए और नटवर ने बबूल के।

समय गुजरा दोनों बीज पेड़ बन गए, अब आमतौर पर देख के तो ऐसा ही प्रतीत होता है की चिमनी की जिन्दगी खुशहाल हो गई लाभ ही लाभ।

लेकिन हुआ क्या यह देखो, आम के सारे वृक्ष पर अभी फल आए नहीं थे। कुछ एक पेड़ फलते भी तो वह भी साल में 3 महीने वह भी बच्चे खा जाते घर में ही। इधर नटवर, कभी ईंधन के लिए तो कभी फर्नीचर के लिए लकड़ी सालों भर कुछ न कुछ बेचता रहता।

नटवर को देख चिमनी ने भी आम को काट के लकड़ी बेच डाला सालों भर। अगले साल बबूल फिर हरे भरे हो गए लेकिन आम का बाग उजड़ चुका था।

इस साधारण सी कहानी की तरह ही है सब कुछ,
दुःख और सुख तो हमारे वर्तमान वाले कामों से बनते हैं।

जो बोया है जाने अनजाने में वह तो आयेगा, लेकिन हम उस आने वाली स्थिति के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, कैसे संतुलन रखते हैं वही सुख और दुख को निर्धारित करता है।

कहानी में नटवर की बीज लगाने की भूल के कारण, कांटों वाला पेड़ आ गया। लेकिन उसने संयम से उस बुरी स्थिति को अपने पक्ष में कर लिया।

इसलिए बस संयम से देखो, स्थिति चाहे कितनी भी बुरी क्यों न हो उससे बाहर निकलने और उसको अपने लिए अच्छा बनाने का सूत्र जरूर होगा।

बस मानसिक शांति और संयम ही तय करेगा तुम्हारा वर्तमान कैसा रहेगा। क्योंकि इतिहास में जी नहीं सकते और भविष्य तभी जी सकते हैं जब वह वर्तमान बन आयेगा तुम्हारे सामने।
प्रश्न -

क्या मुक्ति की कामना होना भी एक कामना नहीं है ?
अगर कोई राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे बड़े पदभार छोड़ कर हिमालय पे जाने की इच्छा रखे तो क्या सही रास्ता है ?

-
सिद्धार्थ गौतम को जब ज्ञान की प्राप्ति हुई, बुद्ध हो गये तो अपने वादा के अनुसार अपनी पत्नी यशोधरा के पास लौटकर आये।
तब यशोधरा ने पूछा - आपने जो कुछ पाया, आप तथागत हुए, बुद्ध हुए - क्या यह सब कुछ यहाँ नहीं मिल सकता था?
बुद्ध ने कहा - मिल तो यहाँ भी सकता था, लेकिन यहाँ भी मिल सकता है जानने के लिए मुझे जाना पड़ा, जिसके बिना यह जान पाना संभव नहीं था।

अब यहीं से अपने उत्तर को समझो, अगर मैं कह दूँ कि कोई अपने बड़े उत्तरदायित्व को छोड़कर चला जाये, यह उचित है; तो तुम्हारा प्रश्न यह होगा फिर राष्ट्र का क्या होगा?, समाज का क्या होगा? फिर तुम्हारे मन में बुद्ध के घर छोड़ जाने पर भी प्रश्न होने लगेगा।

पहली बात, दुनियाँ में किसी के कहीं जाने और रुक जाने से दुनियाँ नहीं चलती, समाज, देश, राष्ट्र आदि बनाई गई संस्था मानव निर्मित है जो हर १०-२० साल में बदलती ही रहती है। यह बहुत बड़े ब्रह्मांड में होने वाली एक छोटी सी घटना है। लेकिन कोई बुद्ध हो जाता है तो यह एक बड़ी घटना है।

समाज, कर्तव्य आदि को छोड़कर जाये बिना भी उस स्थिति तक पहुँचा जा सकता है और कौन कहाँ जा सकेगा, कहाँ जायेगा क, या होगा? यह सब बहुत कुछ प्रकृति या कहो ईश्वर तय करता है या कहो तुम्हारे हमारे पिछले कर्मों पर भी निर्भर करता है। पिछले कहने का मतलब सिर्फ़ पिछले जन्म ही नहीं, पिछले दिन, वर्ष, दशक, शतक हर कार्य का असर दिखता है।

इसलिए बुद्ध बनने की चेष्टा सबकी होती है लेकिन उस तरह की यात्रा पर कम ही लोग करते हैं और जब प्रारब्ध से यात्रा करते हैं तो प्रकृति सारी व्यवस्था कर देती है।

अब प्रश्न है, मुक्ति की कामना भी क्या कामना है?

हर एक कामना को बंधन जानो और मुक्ति की कामना भी एक बंधन ही है। जैसे एक जानवर को रस्सी में बाँधो, लोहे की ज़ंजीर में या सोने की ज़ंजीर में बंधन ही रहेगा। मुक्ति का अर्थ है हर विषय वस्तु के बंधन से मुक्त। लेकिन शुरुआत में मुक्ति की कामना मुक्ति की ओर जाने में मदद करती है।

उदाहरण के लिए मान लो तुम्हें नदी के दूसरे किनारे पर जाना है,
सबसे पहले इस किनारे को छोड़ना होगा
फिर एक नाव की ज़रूरत होगी
फिर दूसरे किनारे नाव पहुँचने पर नाव को भी छोड़ना ही पड़ेगा।
नहीं तो नाव के बंधन में बंधे रहोगे।

यही नाव मुक्ति की कामना है
प्रश्न - मरने के बाद हमारे कर्मों का हिसाब किससे होता है, आत्मा से ?
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तुमसे, तुम्हारे सूक्ष्म शरीर से और तुम स्वयं ही हिसाब करते भी हो और रखते भी हो, आत्मा हर हिसाब-किताब से मुक्त होता है, आत्मा परमात्मा का ही अभिन्न अंग है।

इसको समझो,
शरीर के पांच स्तर हैं, अन्नमय, प्राणमय, मानोमय, विज्ञानमय, आनंदमय।

शुरू के दो स्थूल हैं बाकी के तीन सुक्ष्म है।

इसी सुक्ष्म स्तर पर तुम्हारा चित तुम्हारे कर्मों का हिसाब किताब लगाता है और तुम्हारे कर्मों के अनुसार तुम्हें नए जन्म के लिए अग्रसारित है। यह सारी स्थिति स्थूल शरीर पर दिखाई देती नहीं है गुप्त होती है। इसलिए सुनते हो, तुम्हारे कर्मों का हिसाब चित्रगुप्त भगवान के पास होता है। शब्द चितगुप्त रहा होगा, जो कालांतर में चित्रगुप्त हो गया हो।

तुम्हारे कर्मों की सारी गठरी ढो कर चलना मानोमय और विज्ञानमय कोश या स्तर का काम है। तो मरने के बाद कर्मों के आधार पर इंसान को जो अगला जन्म मिलता है उससे आत्मा पर प्रभाव नहीं होता है और स्थूल शरीर मिट ही जाते हैं।

कहीं कहीं इसे आत्मा से हिसाब किताब होता समझ लेते हैं। जब इसे आत्मा के स्तर पर अलग करोगे तो फिर परमात्मा एक अलग स्थिति बन जाती है। क्योंकि जब आत्मा दूषित हो गई तो एक और स्थिति होगी जो दोष से प्रभावित ना होता हो।

गलत यह भी नहीं है बस एक ही स्थिति को दो अलग-अलग नाम दे दिया जाता है।
अगले जन्म में आत्मा वही रहती है या बदल जाती है और कर्मों का हिसाब हमारे मरने के बाद या पहले? अगर सब कुछ कर्मों का फल है फिर तो कुछ ग़लत सही नहीं होता है।
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इसको इस तरह से समझो,
एक सुनार के पास एक सोने की ईंट है, उसमें से उसने कुछ सोना निकाला और एक कंगन बनाया, कुछ सोने से गले की हार बनाया, कुछ सोने से अंगूठी बनाई।

अब तीनों गहने अलग अलग इन्सान को बेच दिए गए, फिर क्या हुआ होगा। तीनों गहनों की अलग अलग यात्रा शुरू हुई होगी। हो सकता है गले की हार को बाद में अलग आभूषण में बदले गए हों। किसी और को बेचा गया हो।

बार बार अलग आकार मिला होगा, नए मालिक मिले होंगे। कोई आभूषण किसी के पास ज्यादा दिन रहे होंगे कोई जल्दी-जल्दी बदले गए होंगे। अंगूठी हाथ में होने के कारण जल्दी घिस जाती होगी तो अपेक्षाकृत जल्दी आकार और मलिक बदल जाते होंगे, हार कभी-कभी पहना जाता होगा तो लंबे समय तक एक ही आकार में रहता होगा। है न ?

तो समझने वाली बात यह है क्या सोना बदल रहा है ? क्या सोने के गुण में कोई परिवर्तन आ रहा है ? नहीं सिर्फ आकार बदल रहा है, मालिक अर्थात स्थिति बदल रही है।

अब यहाँ गौर से देखो, सारा सोना एक ही है। जो सोनार के ईंट में बचा हुआ है या आभूषणों में घूम रहा है बाज़ार में। इन्हें कहने की सुविधा के लिए - बड़ा सोना और छोटा सोना नाम भर दिया जा सकता है।

उसी तरह परमात्मा से एक अंश निकला और किसी आकार में स्थापित हुआ और फिर उसकी यात्रा शुरू हो गई। जो अंश बाहर निकला और बार-बार बदलता हुआ संसार में घूम रहा है उसे आत्मा कह लिया सुविधा के लिए और जहां से निकला उसे परमात्मा।

तो तुम समझ रहे होगे, आत्मा बदलती नहीं है बस उसको नये नये आकार के आवरण में जाना पड़ता है।

और कर्मों का हिसाब हर वक़्त होते रहता है कुछ हिसाब बहुत छोटे होते हैं तो हमें पता नहीं चलता है। मृत्यु के बाद बड़ा परिवर्तन होता है वहाँ स्थूल शरीर भी टूट जाते हैं, बदल जाते हैं इसलिए वह परिवर्तन स्पष्ट दिखता है।
तुमने सुना होगा लोगों को कहते हुए -
"कर्म के फल इसी जन्म में मिल जाते हैं देखो फलाने ने ऐसा अन्याय किया तो उसके साथ अनुचित हुआ" और "कभी यह भी सुना होगा अच्छा इंसान है, इसके साथ कितना बुरा हुआ, किसी दूसरे जन्म का कर्म फल है"।

जैसे किसी को महीने के आख़िरी में सेलरी मिले या किसी का १० रुपया खो जाए तो यह भी कर्मफल ही तो है। ५ लाख की लॉटरी लग जाना या घर में आग लग जाना ही कर्मफल नहीं है सिर्फ़।

और ग़लत सही तो स्थिति, स्थान और समय के हिसाब से तय करते हैं।
जिसका प्रभाव व्यक्ति, समाज, वातावरण आदि के लिए ज़रूरी हो उसे सही और इसके विपरीत ग़लत कह सकते हो। लेकिन यह सब बदलते रहता है।

उदाहरण के लिए - जंगल काटना, वहाँ घर बनाना, पेड़ों का प्रयोग ईंधन के रूप में करना आज से कुछ साल पहले तक सब सही था। अभी के समय में ग़लत है। इस सृष्टि को इससे क्या लेना देना।
जरा सोचो तो इस पृथ्वी का आकार इस ब्रह्मांड के सामने।

एक और उदाहरण से समझो इसको
तुम्हारे पड़ोस के एक बच्चे की पेंसिल खो गई -
बच्चा परेशान हो सकता है अब डाँट पड़ेगी
या खुश अब नयी पेंसिल मिलेगी
उसके माँ बाप भी दुःखी हो सकते हैं एक अंश, बच्चा लापरवाह है या फिर कोई बात नहीं बच्चा ही तो है।
क्या तुम भी प्रभावित हो, तुम्हें तो शायद पता भी ना चले,
बताएगा कौन? इतनी छोटी सी बात
हाँ, पड़ोसी की कार खो जाए तो संभव है तुम्हें बताये और तुम अपनी सुविधा के अनुसार दुखी या सूखी हो सकते हो।

तो सारा ग़लत सही होना, दुखी या सुखी होना मन का खेल है।
गुरुजी, मेरे खयाल से आत्मा कुछ है ही नहीं जो जन्मती है या मरती है । केवल कामनाओं का जन्म मरण होता है । कामनाएं जो की अति सूक्ष्म conciousness होती है , वही किसी माध्यम से सूक्ष्म शरीर नमक यंत्र से अटैच होती है और उस पर सवार होकर जन्मों की यात्राएं करती है । इन सभी को ऊर्जा देने वाली सत्ता ईश्वर है , जो की कामनाओं, सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर सभी को ऊर्जा प्रदान कर रही है ।

आज अगर 100 कामनाएं है तो वो हो सकता है 5 अलग अलग शरीर धारण कर ले । उन 5 शरीरों द्वारा उन 100 कामनाओं की पूर्ति के उद्देश्य से एक साथ 5 जन्म होंगे।

ऐसा मेरा सोचना है

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एक ही बात को कहने के अलग अलग तरीके हैं। इसलिए तो भारत में अलग अलग दर्शन हुए... कुछ ने आत्मा को स्थान दिया, कुछ ने नहीं दिया।

तुम्हारी बातें भी कुछ स्तर पर ठीक हैं -

लेकिन हमें यहां समझना होगा, क्या हम ऐसा सोच लेने से या सुन लेने से या मान लेने से किसी लाभ को प्राप्त करते हैं तो उत्तर होगा नहीं।

दिक़्क़त यह होती है उसे शब्दों में कहने की कोशिश की जाती है जो शब्दों में पूरी तरह कभी समझा ही नहीं जा सकेगा। लेकिन हर सदी में एक गुरु अपनी तरफ़ से प्रयास करता ही रहा है उसे कुछ आसान शब्दों में कह दिया जाये; गुरु जानता है कोई कभी शब्दों में समझ नहीं पायेगा लेकिन हाँ यात्रा कि शुरुआत के लिए ये शब्द बड़े ज़रूरी होते हैं। इसलिए जब प्रश्नकर्ता बदल जाते हैं तो गुरुओं के उत्तर बदल जाते हैं।

कहते हैं, एक बार बुद्ध किसी गाँव में विहार कर रहे थे तो उनसे किसी ने पूछा -
भगवान मेरा मानना है ईश्वर नहीं होते हैं यह बस लोगों में स्थिरता और शान्ति बनाये रखने के लिए मान लिये गये हैं। आपका इस बारे में क्या कहना है।
बुद्ध ने तत्काल उत्तर दिया - तुम सही सोचते हो।

उसी शाम किसी दूसरे व्यक्ति ने पूछा - भगवान, मेरी बड़ी आस्था है ईश्वर में मुझे उनकी पूजा अर्चना करके गहरी शान्ति मिलती है। आपका इस बारे में क्या मत है? क्या ईश्वर हैं, क्या उनकी पूजा करना ठीक है?
बुद्ध ने तत्काल उत्तर दिया - तुम सही हो, ईश्वर की पूजा करनी ही चाहिए।

यहाँ बुद्ध उसे ना बेवकूफ बना रहे होंगे ना ही असमंजस की स्थिति बना रहे होंगे, वह तो उन दोनों के विश्वास को बल दे रहे हैं। जिससे दोनों अपनी राह पर तत्परता से चले और एक ऐसी स्थिति पर पहुँच जाये जहां ईश्वर है या नहीं इसका द्वंद्व ख़त्म हो जाये।

जब उस स्थिति को अनुभव कर पाओगे या उस स्थिति को जीने लगोगे। तब फिर उसी बात को अलग अलग ढंग से कह सकोगे। उससे पहले सब उधार की बातें हैं।
2024/06/10 11:24:10
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