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‘Essays Demystified’ book is available on Amazon for pre-order. A unique and complete book for UPSC Mains Essay preparation.
This book includes-
- Strategy by the Authors
- all possible Dimensions of an Essay explained in detail
- Examples
- Quotes
- Model Essays
- Practice Sets
and many more…..
So, please don’t miss it and make it an essential part of your UPSC and State PSC Essay Preparations.
Best wishes !!!
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ट्रेनिंग के दौरान मेरे ‘भारत दर्शन’ के अनुभवों पर आधारित Audiobook ज़रूर सुनें 🔥
Nishant Jain IAS
https://youtu.be/t7uLkb8liVg?si=TUG8SulRhx9nJSWm
राष्ट्रीय हिन्दी दिवस समारोह, 2022 के अवसर पर सूरत (गुजरात) में प्रस्तुत वक्तव्य।
उपस्थिति - श्री प्रसून जोशी, श्री पंकज त्रिपाठी, श्री गंगा सिंह राजपुरोहित IAS
उपस्थिति - श्री प्रसून जोशी, श्री पंकज त्रिपाठी, श्री गंगा सिंह राजपुरोहित IAS
Invitation (in form of a Wedding invite) to our Pravasi voters to visit their native places on 25 November to vote in Assembly Elections in Rajasthan 🎉🎉🎉🙏🏻
Don’t You Quit!: The Magic of Untiring Efforts
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एक पैगाम, माँ के नाम……
——————————————-
भावों की तू अजब पिटारी, अरमानों का तू सागर,
नाज़ुक से अहसासों की एक, नर्म-मुलायम सी चादर।
खट्टी-मीठी फटकारें और कभी पलटकर वही दुलार,
जीवन का हर पल तुझमें माँ, तुझसे है सारा संसार।
जिसकी खातिर सब कुछ वारा, अपनी खुशियाँ जानी ना,
वक़्त कहाँ उस पर अब माँ, तेरे दुःख-दर्द चुराने का।
उम्मीदों को पंख लगाने, बड़े शहर को निकला जब,
छुपी रुलाई देखी तेरी, प्यार का तब समझा मतलब।
मिट्टी की तू सोंधी खुशबू, सम्बन्धों की नर्म नमी,
नए शहर में हर मुकाम पर, बस तेरी ही खली कमी।
हैरत है हर चेहरे पर थे, कई मुखौटे और नकाब,
तुझसा भी क्या कोई होगा, चलती -फिरती खुली किताब।
रिश्तों की गर्माहट तुझसे, तुझसे प्यार भरा अहसास,
ले भरपूर दुआयें अपनी, हरदम थी तू मेरे पास।
किसने कहा फरिश्तों के जग में दीदार नहीं होते,
माँ की गोद में एक झपकी, सपने साकार सभी होते।
- ©️निशान्त जैन, 2013 में प्रकाशित कविता
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भावों की तू अजब पिटारी, अरमानों का तू सागर,
नाज़ुक से अहसासों की एक, नर्म-मुलायम सी चादर।
खट्टी-मीठी फटकारें और कभी पलटकर वही दुलार,
जीवन का हर पल तुझमें माँ, तुझसे है सारा संसार।
जिसकी खातिर सब कुछ वारा, अपनी खुशियाँ जानी ना,
वक़्त कहाँ उस पर अब माँ, तेरे दुःख-दर्द चुराने का।
उम्मीदों को पंख लगाने, बड़े शहर को निकला जब,
छुपी रुलाई देखी तेरी, प्यार का तब समझा मतलब।
मिट्टी की तू सोंधी खुशबू, सम्बन्धों की नर्म नमी,
नए शहर में हर मुकाम पर, बस तेरी ही खली कमी।
हैरत है हर चेहरे पर थे, कई मुखौटे और नकाब,
तुझसा भी क्या कोई होगा, चलती -फिरती खुली किताब।
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ले भरपूर दुआयें अपनी, हरदम थी तू मेरे पास।
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माँ की गोद में एक झपकी, सपने साकार सभी होते।
- ©️निशान्त जैन, 2013 में प्रकाशित कविता