हाथ में वंशी, घनश्याम, शरीर पर पीताम्बर बिम्बा- जैसे लाल होंठ, पूर्ण चल नद्र-जैसा मुख कमल नेत्र, ऐसे कृष्ण के अतिरिक्त और कोई तत्व में नहीं जानता....
उषाकाल की अरुण किरणे परोपकारी व्यक्ति,
जो दूसरों के हितों के लिए कार्य करते है,
उनके लिए ऊर्जा और ऐश्वर्य लाती है,
वह उन व्यक्तियों की संतानों के लिए भी समृद्धि लाती है.....
जो दूसरों के हितों के लिए कार्य करते है,
उनके लिए ऊर्जा और ऐश्वर्य लाती है,
वह उन व्यक्तियों की संतानों के लिए भी समृद्धि लाती है.....
सफलता कभी अंतिम नहीं होती,
विफलता कभी घातक नहीं होती,
जो मायने रखता है
वो है साहस...
विफलता कभी घातक नहीं होती,
जो मायने रखता है
वो है साहस...
प्रशंसक हमारी स्थिति देखते है
और
शुभचिंतक हमारी परिस्थिति....
और
शुभचिंतक हमारी परिस्थिति....
दो बाते इंसान के व्यक्तित्व में बहुत बड़ा बदलाव लाती है,
एक जब कोई ख़ास उसके जीवन में आ जाए,
दूसरा जब कोई बहुत ख़ास उसके जीवन से निकल जाए।।।
एक जब कोई ख़ास उसके जीवन में आ जाए,
दूसरा जब कोई बहुत ख़ास उसके जीवन से निकल जाए।।।
अच्छा मनुष्य बनने के लिए भी उतने ही प्रयास करने चाहिए,
जितना की हम सुंदर दिखने के लिए करते है .....
जितना की हम सुंदर दिखने के लिए करते है .....
जीवन में कई भूलें भूलने के लिए होती है,
लेकिन कई भूलें आँखें खोलने वाली भी होती है....
लेकिन कई भूलें आँखें खोलने वाली भी होती है....
लंबा धागा और लंबी जुबान,
केवल समस्या ही देते है,
इसलिए धागे को लपेट कर और
जुबान को समेटकर रखना ही उचित है....
केवल समस्या ही देते है,
इसलिए धागे को लपेट कर और
जुबान को समेटकर रखना ही उचित है....
जब फसल सुख कर जल के बिन,
तिनका तिनका बन गिर जाये,
फिर होने वाली वर्षा का कोई अर्थ नहीं रह जाता,
उसी प्रकार संबंध कोई भी हो,
यदि दु:ख में साथ नहीं दे,
तो फिर सुख में उन संबंधो का कोई अर्थ नहीं रह जाता है....
तिनका तिनका बन गिर जाये,
फिर होने वाली वर्षा का कोई अर्थ नहीं रह जाता,
उसी प्रकार संबंध कोई भी हो,
यदि दु:ख में साथ नहीं दे,
तो फिर सुख में उन संबंधो का कोई अर्थ नहीं रह जाता है....
असहमति अनादर नहीं है,
यह खुद को खुलकर और ईमानदारी से व्यक्त करने का एक तरीका है....
यह खुद को खुलकर और ईमानदारी से व्यक्त करने का एक तरीका है....
भावनाओं को समझने वाला मनुष्य,
दुनिया का सबसे पढ़ा लिखा मनुष्य कहलाता है....
दुनिया का सबसे पढ़ा लिखा मनुष्य कहलाता है....
विचार चाहे कितने भी उत्तम क्यों ना हो,
वह सार्थक तभी माने जाते हैं,
जब उनकी झलक व्यवहार में दिखती है।
वह सार्थक तभी माने जाते हैं,
जब उनकी झलक व्यवहार में दिखती है।